Wednesday, September 29, 2010
Sunday, September 5, 2010
सिसकिया
ख़ामोश साँस
ख़ामोश धड़कन
दर्द दिया अपनी ही आत्मा को
जैसे जान हमारी निकल गयी
क्या होता है दर्द
ये आज जाना हमने
ये ख़ामोशी जैसे नासूर बन गयी है
चीख भी नहीं आ रही है
बस आँखोंसे बरस रही है धाराए
न रोक पा रही हूँ और न समझा पा रही हु
इस दिल को
ख़ामोश धड़कन
दर्द दिया अपनी ही आत्मा को
जैसे जान हमारी निकल गयी
क्या होता है दर्द
ये आज जाना हमने
ये ख़ामोशी जैसे नासूर बन गयी है
चीख भी नहीं आ रही है
बस आँखोंसे बरस रही है धाराए
न रोक पा रही हूँ और न समझा पा रही हु
इस दिल को
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