Sunday, September 5, 2010

सिसकिया

ख़ामोश साँस
ख़ामोश धड़कन
दर्द दिया अपनी ही आत्मा को
जैसे जान हमारी निकल गयी
क्या होता है दर्द
ये आज जाना हमने
ये ख़ामोशी जैसे नासूर बन गयी है
चीख भी नहीं आ रही है
बस आँखोंसे बरस रही है धाराए
न रोक पा रही हूँ और न समझा पा रही हु
इस दिल को

9 comments:

  1. भावों को सुन्दर तरीके से सजाया आपने..

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  2. ये ख़ामोशी जैसे नासूर बन गयी है
    चीख भी नहीं आ रही है
    bahut sundar badhai

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  3. चीख भी नहीं आ रही है
    बस आँखोंसे बरस रही है धाराए
    न रोक पा रही हूँ और न समझा पा रही हु
    इस दिल को
    ...gahri antarvyatha ka sundar chitran...
    bahut achhi rachna..
    Ganeshotsav kee haardik shubhkamnayne

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  4. Bahut sundar,Jyoti!
    "hu" ko "hoon" kar lo please!

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  5. Ye word verification hata do na!Comment karna aasaan ho jayega!

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  6. दर्द की सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  7. दिल को समझना ही कठिन है...दर्द भरा

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